hindisamay head


अ+ अ-

कविता

धातुएँ

नरेश सक्सेना


सूर्य से अलग होकर पृथ्वी का घूमना शुरू हुआ
शुरू हुआ चुंबकत्व

धातुओं की भूमिका शुरू हुई
धातु युग से पहले भी था धातु युग
धातु युग से पहले भी है धातु युग
कौन कहता है कि धातुएँ फलती-फूलती नहीं हैं
इन दिनों
फलों और फूलों में वे सबसे ज्यादा मिलती हैं
पानी के बाद

मछलियों और पक्षियों में होती हुई
वे आकाश-पाताल एक कर रही हैं

दफ्तर जाते हुए या बाजार
या घर लौटते हुए वे हमें घेर लेती हैं धुएँ में
और खून में घुलने लगती हैं

चिंतित हैं धातुविज्ञानी
कि असंतुलित हो रहे हैं धरती पर धातु के भंडार
कि वे उनके जिगर में, गुर्दों में, नाखूनों में,
त्वचा में, बालों की जड़ों में जमती जा रही हैं

अभी वे विचारों में फैल रही हैं लेकिन
एक दिन वे बैठी मिलेंगी
हमारी आत्मा में
फिर क्या होगा
गर्मी में गर्म और सर्दी में ठंडी
खींचो तो खिंचती चली जाएँगी
पीटो तो पिटती चली जाएँगी

ऐसा भी नहीं है
कि इससे पूरी तरह बेखबर हैं लोग
मुझसे तो कई बार पूछ चुके हैं मेरे दोस्त
कि यार नरेश
तुम किस धातु के बने हो!

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में नरेश सक्सेना की रचनाएँ